Friday, 5 February 2021

नानी, ननिहाल संजोती है।

 मा की मईया जो होती है,

नानी, ननिहाल संजोती है।


हर रिश्ता उससे बनता है,

हर पीढ़ी को एक धागे वो बुनती है।


गर्मी की छुट्टी उसके आंगन खेले थे,

ना जाने कितनी यादे उस आंगन ने देखे थे।


नाना नानी की वो हर एक डांट,

तुमसे करते थे, आज भी वो याद।


तुम्हारे मंदिर में चुप चुप कर आना,

रसोइए में छुप छुप कर डिब्बों को हाथ लगाना।


तुम्हारी ज़ोर आवाज़ सुन कर, बच्चों का भागना,

नहीं करेंगे फिर वो शरारत, वादा कर के भी दोहराना।


छोटी छोटी बातों में लड़कपन तक तुमसे झगड़ना,

सयाने होने पर भी तू तू मैं मैं तुमसे ही तो होता था।


तुम्हारी वो पूजा पाठ की रोक टोक पे बेहेस करना,

फिर औरो के सामने उन्हीं बातों की पहर्वी देना।


अब कौन उस ननिहाल को संजोएगा?


कौन उस आंगन में डांट लगाएगा?


किससे छुप छुप रसोई गंदा करने को सताएंगे?


किससे छूट पाक की नोक झोंक लगाएंगे?


तुम्हारे मंदिर को गंदे हाथों से छूने को

अब किसको चिढ़ाएंगे?


जाने से पहले एक डांट और लगा जाती,

उन सब यादों को संभाल संजो के रखने को बता जाती,

पास आकर दे जाती या कोई ऐसी निशानी, 

ननिहाल की याद आने पे जिसे हम सीने से लगा कर फिर उस आंगन के पल को फिर महसूस कर पाते,

अब तो बस यादों के सहारे छोड़ गई है तुम *नानी*।

Tuesday, 5 January 2016

जिन्दगी का फलसफा

नादान दिल कटे पंख के बावजूद उड़ना चाहे,
वक्त रेह-रेह के वजूद का एहसास दिलाए |
सब कहे गुजरा कल भूल आगे चलो,
फिर खुद ही जख्म के घाव खुरेदे वो |
चाहूँ न कि पुराना कुछ याद आऐ,
पर ये दुनिया भुलाते हुए भी याद कराऐ |
क्युँ न जिन्दगी आती एक हिसाब के किताब के साथ,
न होता कोई शिकवा न गिला न होती कोई गलत बात |
जिन्दगी का फलसफा है जाने कितना कठिन,
इसे समझना क्या कभी होगा मुमकिन |
न जाने कैसे थे वे ऋषि-मुनी जीवन चक्र इतनी आसानी से भूझ लेते थे,
बिना किसी परेशानी के जी कर फिर मोक्ष को हर लेते थे |
कभी लगता बड़ा आसान है एक खुली किताब की तरह,
कभी उसी किताब के पन्नो में खो जाऊ भूलभुलईयी की तरह |
जाने मेरे जीवन में वो पल कब आऐगा,
जब जिन्दगी का यह फलसफा मुझे समझ आऐगा |
दो पल ही सही, चक्का चला कर सही जिन्दगी का, उसे पूरा कर लूगी मैं,
जाने कब वो किनारा छू सकूगी मैं |

Monday, 4 January 2016

गुरू को नमन

गिनी जाऐ वो कौन सी सदी,
न जिसमे गुरू का बखान हुआ हो |
बताऊ वो कौन सा कार्य,
न जिसमे गुरू का स्थान आया हो |
एक मनुष्य के जन्म से ही शुरू हो जाती है,
गुरू शिक्षा के शब्दो का महत्व |
जीवन के हर पन्ने सिखाता समझाता गुरू,
चिकने घडे़ से इन्सान को परिपक्व बनाता है गुरू |
चाहे किसी भी मकाम में पहुचे मनुष्य,
हर सफलता के पीछे नीव बनाता है गुरू |

एक दिन है समर्पित पूर्णतह गुरू के चरणों में |

आज की पीढ़ी चाहे न बन पाऐ एकलव्य,
पर आज भी हर गुरू ने साथ दिया शिष्या का द्रोणाचार्य सा |

MY WORDS

Words, words, words, a way to express,
One can show up a lot, either sorrow or happiness.
Advised before speaking to think once,
Words when club together, frame sentence.

Words of praise, words of jealously,
Words of assault, words of agony.

It hurts when words are used in wrong way,
Hard to correct it, after you say.
Relations can be build or broken,
The way words are spoken.

It was not meant, unintentional too,
My apologies, for my words have hurt you.

Thursday, 10 July 2014

aisa hai tu mere jeevan me

Jo lehar na ho toh sagar bhi thehra pani sa aam hota,
Jo phul-phal na ho toh pedh bhi naam ka jatal hota,
Jo nami na ho toh mitti bhi banzar badnam hoti,
Jo jalan na ho toh aag kis kaam hoti,
Jo barf me thandak na ho toh sirf ek sakth pighalne wali pathar saman hoti,
Jo saanse na ho toh jeevan chakra nakam hoti,
Jo tumhare pyaar ki kashish aur junoon na hota toh ye jeevan ka khakh me milna anjam hota.

Friday, 4 April 2014

कभी हाँ कभी न

बेकसूर सा लगता है अपना ये दिल सभी को,
जान के भी अनजान बनते है, करामात करते है ये जो।
बिन पेंदे का लोटा भी बन जाता है,
जब किसी दो चीजों के बीच ये फस जाता है।
खुद ही नहीं मालूम इससे कि ये कया चाह्ता है,
कभी ये तो कभी वो कि कश्मकश मे रह जाता है।
दिल के किसी कोने मे शेर की दहाड़ भी छुपा रखा है,
पर अपनों के आँसुओं की धार के आगे मोम से भी जल्दी पिघल जाता है।
कितनी आसानी से किसी पल मे ख़ुशी कि वजह बाना लेता है,
वही उस पल के न होने के एहसास कि सोच से ही डर के सेहमता है।
हमेशा अपनी एक अलग सी छह कि उङान भरता रहता है,
पर फिर घूम के हमेशा उसी ज़ाज़बात के भवर मे उलझ जता है।
कभी प्यार के दरिया मे नव चलाता है,
तो कभी टूटे दिल के पहाड़ बना चढता है।
कभी हाँ कभी न का डामाडोल,
मंज़िल के आखरी पड़ाव मे भी रहता है ये तौल।
कभी विद्रोह मे उठाये कदम से जीवन सँवार लेता है,
तो कभी रजामंदी के फैसले से भी ज़िन्दगी उजाढ लेता है।

Monday, 31 March 2014

ईश्वर की रचना हुई शोशित

था कभी ऐसा भी एक नज़ारा,
देखने में ये जहाँ लगता था कितना प्यारा।

हरियाली ही हरियाली थी हर जगह,
फूलों से सजा था सारा समां।

ईश्वर की पवित्र रचना हुई शोशित,
मानवों ने कर दिया इन्हे प्रदूशित।

ना जाने कहाँ गया वो कुदरत का नज़राना,
कलयुग में आ गया मिलावट का ज़माना।

हर चीज़ होती जा रही है अशुद्ध,
बिमारियों से लड़ लड़ के जी रहे है सब।

रास्ता ढूँढना पड़ेगा हमें खुद,
ताकी वापस आ सके वो हरियाली-खुशहाली अब।