Saturday 13 August 2011

रक्षाबंधन कि डोर

याद आता हमे हर वो लम्हा है,
जब हमारे साथ तुम्हारा साया रहा है।


वो बचपन के खेल वो शैतानियां,

वो मस्ती वो खिलकारियाँ। 

छुटपन में साथ रेट के महल बनाना,सबका साथ घूमने जाना,
फिर जीवन के नए मोड़ पर हाथ थाम के संभालना। 


माँ और पापा के साथ रहा आपका भी साया है,
भाई हर मुश्किल को दूर करेगा ये विश्वास रहा है। 


हर डर दर्द आपके साये ने हटाया है,

शुक्रिया करने का आज फिर ख़ास दिन आया है। 

जुड़ा  रहे हमेशा ये बंधन,

हर साल ख़ुशी लाये ये रक्षाबंधन। 


श्रेयांशु और श्रीकांत मिश्रा। … 

Saturday 6 August 2011

बरसात का वो लम्हा

कुछ तोह है जो हमसे राज़ है,
कुछ तोह है जो हमसे राज़ है.
आज फिर रोये बादल, आई उसे आज फिर किसी की याद है,
आज फिर रोये बादल, आई उसे आज फिर किसी की याद है.
बादल ने कबसे संजोया था उन मोतियों का खज़ाना,
हर एक खास लम्हे का था वो नजराना.
टूट गई वो माला क्यूँ,
क्यूँ अलग हुए ये डोर यु,
क्या लिखा था उनके नस्सेब में,
कितना मायूस है वो इस जुदाई से.