Saturday 6 August 2011

बरसात का वो लम्हा

कुछ तोह है जो हमसे राज़ है,
कुछ तोह है जो हमसे राज़ है.
आज फिर रोये बादल, आई उसे आज फिर किसी की याद है,
आज फिर रोये बादल, आई उसे आज फिर किसी की याद है.
बादल ने कबसे संजोया था उन मोतियों का खज़ाना,
हर एक खास लम्हे का था वो नजराना.
टूट गई वो माला क्यूँ,
क्यूँ अलग हुए ये डोर यु,
क्या लिखा था उनके नस्सेब में,
कितना मायूस है वो इस जुदाई से.


No comments:

Post a Comment