बेकसूर सा लगता है अपना ये दिल सभी को,
जान के भी अनजान बनते है, करामात करते है ये जो।
बिन पेंदे का लोटा भी बन जाता है,
जब किसी दो चीजों के बीच ये फस जाता है।
खुद ही नहीं मालूम इससे कि ये कया चाह्ता है,
कभी ये तो कभी वो कि कश्मकश मे रह जाता है।
दिल के किसी कोने मे शेर की दहाड़ भी छुपा रखा है,
पर अपनों के आँसुओं की धार के आगे मोम से भी जल्दी पिघल जाता है।
कितनी आसानी से किसी पल मे ख़ुशी कि वजह बाना लेता है,
वही उस पल के न होने के एहसास कि सोच से ही डर के सेहमता है।
हमेशा अपनी एक अलग सी छह कि उङान भरता रहता है,
पर फिर घूम के हमेशा उसी ज़ाज़बात के भवर मे उलझ जता है।
कभी प्यार के दरिया मे नव चलाता है,
तो कभी टूटे दिल के पहाड़ बना चढता है।
कभी हाँ कभी न का डामाडोल,
मंज़िल के आखरी पड़ाव मे भी रहता है ये तौल।
कभी विद्रोह मे उठाये कदम से जीवन सँवार लेता है,
तो कभी रजामंदी के फैसले से भी ज़िन्दगी उजाढ लेता है।
जान के भी अनजान बनते है, करामात करते है ये जो।
बिन पेंदे का लोटा भी बन जाता है,
जब किसी दो चीजों के बीच ये फस जाता है।
खुद ही नहीं मालूम इससे कि ये कया चाह्ता है,
कभी ये तो कभी वो कि कश्मकश मे रह जाता है।
दिल के किसी कोने मे शेर की दहाड़ भी छुपा रखा है,
पर अपनों के आँसुओं की धार के आगे मोम से भी जल्दी पिघल जाता है।
कितनी आसानी से किसी पल मे ख़ुशी कि वजह बाना लेता है,
वही उस पल के न होने के एहसास कि सोच से ही डर के सेहमता है।
हमेशा अपनी एक अलग सी छह कि उङान भरता रहता है,
पर फिर घूम के हमेशा उसी ज़ाज़बात के भवर मे उलझ जता है।
कभी प्यार के दरिया मे नव चलाता है,
तो कभी टूटे दिल के पहाड़ बना चढता है।
कभी हाँ कभी न का डामाडोल,
मंज़िल के आखरी पड़ाव मे भी रहता है ये तौल।
कभी विद्रोह मे उठाये कदम से जीवन सँवार लेता है,
तो कभी रजामंदी के फैसले से भी ज़िन्दगी उजाढ लेता है।
No comments:
Post a Comment